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कब तक उस का हिज्र मनाता सहरा छोड़ दिया - उबैद सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

कब तक उस का हिज्र मनाता सहरा छोड़ दिया

कब तक उस का हिज्र मनाता सहरा छोड़ दिया

जीने की उम्मीद में मैं ने क्या क्या छोड़ दिया

मेरे साथ लगा रहता है यादों का बादल

धूप-भरे रस्तों पर उस ने साया छोड़ दिया

हर चेहरे पर इक चेहरे का धोका होता है

किस ने मुझ को इस बस्ती में तन्हा छोड़ दिया

दुनिया सब कुछ जान गई है मेरे बारे में

बिंत-ए-अलम ने ना-महरम से पर्दा छोड़ दिया

पहले पहले ख़ौफ़ बहुत आता था मरने से

फिर वो मंज़िल आई मैं ने डरना छोड़ दिया

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In Hindi By Famous Poet Obaid Siddiqi. is written by Obaid Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Obaid Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.