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दयार-ए-ख़्वाब से आगे सफ़र करने का दिन है - उबैद सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

दयार-ए-ख़्वाब से आगे सफ़र करने का दिन है

दयार-ए-ख़्वाब से आगे सफ़र करने का दिन है

तो क्या ये क़िस्सा-ए-जाँ मुख़्तसर करने का दिन है

बुलावा आ गया है फिर मुझे सहरा-नवर्दी का

यही तो ज़िंदगी को हम-सफ़र करने का दिन है

मुझे रक़्स-ए-जुनूँ करना पड़ेगा शाम होने तक

मुदारात-ए-हुजूम-ए-दीदा-तर करने का दिन है

ख़िज़ाँ की बद-हवासी उस के चेहरे से है ज़ाहिर

जहाँ को मौसम-ए-गुल की ख़बर करने का दिन है

ये ख़ाशाक-ए-समाअत ख़ाक होना चाहते हैं

ज़बाँ को आज अपनी शोला-गर करने का दिन है

हुआ है दीदनी मंज़र ज़मीं से आसमाँ का

क़फ़स में आरज़ू-ए-बाल-ओ-पर करने का दिन है

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In Hindi By Famous Poet Obaid Siddiqi. is written by Obaid Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Obaid Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.