दरिया जो चढ़ा है वो उतरने नहीं देना
दरिया जो चढ़ा है वो उतरने नहीं देना
ये लम्हा-ए-मौजूद गुज़रने नहीं देना
दुनिया ही नहीं दिल को भी इस शहर-ए-हवस में
मन-मानी किसी हाल में करने नहीं देना
महसूस नहीं होगी मसीहा की ज़रूरत
ये ज़ख़्म ही ऐसा है कि भरने नहीं देना
मुश्किल है मगर काम ये करना ही पड़ेगा
इंसान को इंसान से डरने नहीं देना
जिस ख़्वाब में रू-पोश हो जीने की तमन्ना
वो ख़्वाब-ए-दिल-आवेज़ बिखरने नहीं देना
गर दिल को जला कर भी धुआँ करना पड़े तो
इन पौदों को कोहरे में ठिठुरने नहीं देना
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