खोलो न कोई ऐब किसी का भी यहाँ पर
आसेब को मिल जाएगा दरवाज़ा खुला सा
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दिलों के ज़ख़्म भरते क्यूँ नहीं हैं
उभरती डूबती साँसों का सिलसिला क्यूँ है
हर तरफ़ नाला-ओ-फ़रियाद के मंज़र देखें
सदाएँ डूबती हैं जब
इन्हें आगे निकल जाने दो 'हारिस'
ख़ाली दीवार बुरी लगती है
नया चार दिन में पुराना हुआ
वक़्त बदला सोच बदली बात बदली
अपना सच उस को सुनाने के लिए
तह-ब-तह खुलती ही रहती है सदा
अजब अश्कों की बारिश हो गई है