हम किताबों में जिसे पाते हैं 'हारिस'
आदमी वैसा कोई मिलता कहाँ है
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अजब अश्कों की बारिश हो गई है
मशीनें काम अपना कर रही हैं
इन्हें आगे निकल जाने दो 'हारिस'
वक़्त बदला सोच बदली बात बदली
अपना सच उस को सुनाने के लिए
ख़ाली दीवार बुरी लगती है
हमारी ज़ात में बस्ते सभी हैं
उभरती डूबती साँसों का सिलसिला क्यूँ है
तह-ब-तह खुलती ही रहती है सदा
खोलो न कोई ऐब किसी का भी यहाँ पर
हर तरफ़ नाला-ओ-फ़रियाद के मंज़र देखें