दिलों के ज़ख़्म भरते क्यूँ नहीं हैं
दिलों के ज़ख़्म भरते क्यूँ नहीं हैं
हम इस पर ग़ौर करते क्यूँ नहीं हैं
दग़ा दे कर निकल जाती है आगे
ख़ुशी से लोग डरते क्यूँ नहीं हैं
तिजारत क्यूँ अधूरी है हमारी
हमारे नाप भरते क्यूँ नहीं हैं
किसी ने भी न पूछा दुश्मनों से
मोहब्बत आप करते क्यूँ नहीं हैं
हमारी ज़िंदगी है मौत जैसी
यही सच है तो मरते क्यूँ नहीं हैं
नज़र औरों पे क्यूँ रहती है 'हारिस'
हम अपना काम करते क्यूँ नहीं हैं
(381) Peoples Rate This