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दिलों के ज़ख़्म भरते क्यूँ नहीं हैं - उबैद हारिस कविता - Darsaal

दिलों के ज़ख़्म भरते क्यूँ नहीं हैं

दिलों के ज़ख़्म भरते क्यूँ नहीं हैं

हम इस पर ग़ौर करते क्यूँ नहीं हैं

दग़ा दे कर निकल जाती है आगे

ख़ुशी से लोग डरते क्यूँ नहीं हैं

तिजारत क्यूँ अधूरी है हमारी

हमारे नाप भरते क्यूँ नहीं हैं

किसी ने भी न पूछा दुश्मनों से

मोहब्बत आप करते क्यूँ नहीं हैं

हमारी ज़िंदगी है मौत जैसी

यही सच है तो मरते क्यूँ नहीं हैं

नज़र औरों पे क्यूँ रहती है 'हारिस'

हम अपना काम करते क्यूँ नहीं हैं

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In Hindi By Famous Poet Obaid Haris. is written by Obaid Haris. Complete Poem in Hindi by Obaid Haris. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.