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वक़्त-ए-रुख़्सत मुझे क़दमों में मचल जाने दो - नुज़हत निगार कविता - Darsaal

वक़्त-ए-रुख़्सत मुझे क़दमों में मचल जाने दो

वक़्त-ए-रुख़्सत मुझे क़दमों में मचल जाने दो

ये तमन्ना तो मिरे दिल की निकल जाने दो

अहद-ओ-पैमान तुम्हारे न बदलने पाएँ

सारी दुनिया जो बदलती है बदल जाने दो

लब-कुशाई की इजाज़त जो नहीं है न सही

मेरी पलकों से मिरे अश्क तो ढल जाने दो

अपने आँगन की ख़ुनुक छाँव मुबारक हो तुम्हें

मुझ को सहरा की कड़ी धूप में जल जाने दो

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In Hindi By Famous Poet Nuzhat Nigar. is written by Nuzhat Nigar. Complete Poem in Hindi by Nuzhat Nigar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.