हर इक क़दम पे जो पुर्सान-ए-हाल चाहिए था
हर इक क़दम पे जो पुर्सान-ए-हाल चाहिए था
तो फिर उसे भी हमारा ख़याल चाहिए था
वो रिश्ते-नातों को रस्मन निभाने आया था
हमें दिलों का तअ'ल्लुक़ बहाल चाहिए था
बुलंदियों पे तवाज़ुन न रह सका क़ाएम
यहाँ उरूज को थोड़ा ज़वाल चाहिए था
ग़ज़ल तो आप से ले लेती पढ़ भी देती मगर
मुझे अदब में भी रिज़्क़-ए-हलाल चाहिए था
कमाल पर है ये एहसास इन दिनों 'नुसरत'
कोई हमें भी यहाँ बा-कमाल चाहिए था
(523) Peoples Rate This