वो इस अंदाज़ की मुझ से मोहब्बत चाहता है
वो इस अंदाज़ की मुझ से मोहब्बत चाहता है
मिरे हर ख़्वाब पर अपनी हुकूमत चाहता है
मिरे हर लफ़्ज़ में जो बोलता है मुझ से बढ़ कर
मिरे हर लफ़्ज़ की मुझ से वज़ाहत चाहता है
बहाना चाहिए उस को भी अब तर्क-ए-वफ़ा का
मैं ख़ुद उस से करूँ कोई शिकायत चाहता है
उसे मालूम है मेरे परों में दम नहीं है
मिरा सय्याद अब मुझ से बग़ावत चाहता है
वो कहता है कि मैं उस की ज़रूरत बन चुकी हूँ
तो गोया वो मुझे हस्ब-ए-ज़रूरत चाहता है
कभी उस के सवालों से मुझे लगता है ऐसे
कि जैसे वो ख़ुदा है और क़यामत चाहता है
उसे मालूम है मैं ने हमेशा सच लिखा है
वो फिर भी झूट की मुझ से हिमायत चाहता है
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