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लहू उछालते लम्हों का सिलसिला निकला - नुसरत ग्वालियारी कविता - Darsaal

लहू उछालते लम्हों का सिलसिला निकला

लहू उछालते लम्हों का सिलसिला निकला

मुझे पहुँचना कहाँ था कहाँ मैं आ निकला

जहाँ सफ़ेद गुलाबों का ख़्वाब था रौशन

वहाँ सियाह पहाड़ों का सिलसिला निकला

बहाव तेज़ था दरिया का चंद लम्हों में

मिरी निगाह की हद से वो दूर जा निकला

तिलिस्म टूटा जब उस के हसीन लहजे का

मिरी उमीद के बर-अक्स फ़ैसला निकला

न जाने कब से मैं उस के क़रीब था लेकिन

बग़ौर देखा तो सदियों का फ़ासला निकला

जो लम्हा लम्हा जुदा कर रहा था ख़ुद से मुझे

मिरे वजूद के अंदर ही वो छुपा निकला

समझ रहे थे जिसे हम बरात का मंज़र

क़रीब जा के जो देखा तो हादसा निकला

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In Hindi By Famous Poet Nusrat Gwaliari. is written by Nusrat Gwaliari. Complete Poem in Hindi by Nusrat Gwaliari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.