तारीख़-ए-जुनूँ ये है कि हर दौर-ए-ख़िरद में
इक सिलसिला-ए-दार-ओ-रसन हम ने बनाया
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
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मैं तिनकों का दामन पकड़ता नहीं हूँ
शौक़ था शबाब का हुस्न पर नज़र गई
मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए
हक़ीक़त जिस जगह होती है ताबानी बताती है
दिल-ओ-दिलबर सही अब ख़्वाब से बेदार हैं दोनों
तग़य्युरात के आलम में ज़िंदगानी है
आग़ोश-ए-रंग-ओ-बू के फ़साने में कुछ नहीं
इक दामन-ए-रंगीं लहराया मस्ती सी फ़ज़ा में छा ही गई
रंग यहाँ बहुत मगर रंग से काम भी नहीं
उस दिल की मुसीबत कौन सुने जो ग़म के मुक़ाबिल आ जाए