सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(403) Peoples Rate This
दिल है कि मोहब्बत में अपना न पराया है
यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में
किस बेबसी के साथ बसर कर रहा है उम्र
मय-ख़ाने में बढ़ती गई तफ़रीक़-ए-निहाँ और
ज़िंदगी क़रीब है किस क़दर जमाल से
दुनिया सँवर गई है निज़ाम-ए-दिगर के बा'द
धड़कनें दिल की गिने ख़ूँ में रवानी माँगे
अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं
गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
जल्वा-ए-सहर
दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती में
चिलमन से जो दामन के किनारे निकल आए