मैं तिनकों का दामन पकड़ता नहीं हूँ
मोहब्बत में डूबा तो कैसा सहारा
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गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
मेरी आँखों में हैं आँसू तेरे दामन में बहार
अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं
ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
इक नज़र का फ़साना है दुनिया
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
किस बेबसी के साथ बसर कर रहा है उम्र
मआज़-अल्लाह मय-ख़ाने के औराद-ए-सहर-गाही
ख़ाक और ख़ून से इक शम्अ जलाई है 'नुशूर'
नफ़स नफ़स पे मुझे याद आए जाते हैं
हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए