किस बेबसी के साथ बसर कर रहा है उम्र
इंसान मुश्त-ए-ख़ाक का एहसास लिए हुए
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
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Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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ख़ाक और ख़ून से इक शम्अ जलाई है 'नुशूर'
अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं
पैराहन-ए-रंगीं से शोला सा निकलता है
सहर और शाम से कुछ यूँ गुज़रता जा रहा हूँ मैं
दुनिया सँवर गई है निज़ाम-ए-दिगर के बा'द
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
ज़माना याद करे या सबा करे ख़ामोश
हस्ती का नज़ारा क्या कहिए मरता है कोई जीता है कोई
लम्हे उलझन के क़रीब आ पहुँचे
दिल-ओ-दिलबर सही अब ख़्वाब से बेदार हैं दोनों
है शाम अभी क्या है बहकी हुई बातें हैं
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा