ख़ाक और ख़ून से इक शम्अ जलाई है 'नुशूर'
मौत से हम ने भी सीखी है हयात-आराई
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दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती में
सरक कर आ गईं ज़ुल्फ़ें जो इन मख़मूर आँखों तक
दिल है कि मोहब्बत में अपना न पराया है
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
फ़िक्र-ए-नौ ज़ौक़-ए-तपाँ से आई है
एक रिश्ता भी मोहब्बत का अगर टूट गया
कितना अजीब-तर है ये रब्त-ए-ज़िंदगानी
अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
भुलाता हूँ मगर ग़म की दरख़शानी नहीं जाती
सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का
है शाम अभी क्या है बहकी हुई बातें हैं
इक दामन-ए-रंगीं लहराया मस्ती सी फ़ज़ा में छा ही गई