हस्ती का नज़ारा क्या कहिए मरता है कोई जीता है कोई
जैसे कि दिवाली हो कि दिया जलता जाए बुझता जाए
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ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
एक रिश्ता भी मोहब्बत का अगर टूट गया
तजल्लियों से ग़म-ए-ए'तिबार ले के उठा
किस बेबसी के साथ बसर कर रहा है उम्र
हम रिवायात को पिघला के 'नुशूर'
याद आती रही भुला न सके
कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते
ज़माना याद करे या सबा करे ख़ामोश
दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर
दिल है कि मोहब्बत में अपना न पराया है
हसरत-ए-फ़ैसला-ए-दर्द-ए-जिगर बाक़ी है
दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है