एक रिश्ता भी मोहब्बत का अगर टूट गया
देखते देखते शीराज़ा बिखर जाता है
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मैं शाद हूँ तो ज़माने में शादमानी है
किस बेबसी के साथ बसर कर रहा है उम्र
दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती में
याद आती रही भुला न सके
रंग यहाँ बहुत मगर रंग से काम भी नहीं
ज़माना याद करे या सबा करे ख़ामोश
हाथ से दुनिया निकलती जाएगी
चिलमन से जो दामन के किनारे निकल आए
हमा-गिर्या सिल्क-ए-शबनम हमा-अश्क बज़्म-ए-अंजुम
भुलाता हूँ मगर ग़म की दरख़शानी नहीं जाती
मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
ग़म-ए-ख़ामोश जो बा-अश्क-चकाँ रखता हूँ