इक नज़र का फ़साना है दुनिया
सौ कहानी है इक कहानी से
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ज़ीस्त मिलती है उम्र-ए-फ़ानी से
धड़कनें दिल की गिने ख़ूँ में रवानी माँगे
कभी सुनते हैं अक़्ल-ओ-होश की और कम भी पीते हैं
ज़िंदगी परछाइयाँ अपनी लिए
ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
तेज़-तर लहजा-ए-गुफ़्तार किया है हम ने
पैराहन-ए-रंगीं से शोला सा निकलता है
दुनिया सँवर गई है निज़ाम-ए-दिगर के बा'द
ये नज़्म-ए-गुरेज़ाँ है बरहम-ज़दनी पहले
तग़य्युरात के आलम में ज़िंदगानी है
चमन को ख़ार-ओ-ख़स-ए-आशियाँ से आर न हो
मय-ख़ाने में बढ़ती गई तफ़रीक़-ए-निहाँ और