दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने
जैसे कोई लम्बे क़िस्से को पढ़ते पढ़ते उकता जाए
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
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दुनिया सँवर गई है निज़ाम-ए-दिगर के बा'द
याद आती रही भुला न सके
मैं अभी से किस तरह उन को बेवफ़ा कहूँ
क़ामत-ए-दिल-रुबा पर शबाब आ गया
कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते
नज़र नज़र को साक़ी-ए-हयात कहते आए हैं
ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
भुलाता हूँ मगर ग़म की दरख़शानी नहीं जाती
पैराहन-ए-रंगीं से शोला सा निकलता है
ज़िंदगी क़रीब है किस क़दर जमाल से