दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर
मज़दूर की क़िस्मत के सितारे निकल आए
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तारीख़-ए-जुनूँ ये है कि हर दौर-ए-ख़िरद में
ये नज़्म-ए-गुरेज़ाँ है बरहम-ज़दनी पहले
गुनाहगार तो रहमत को मुँह दिखा न सका
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
पैराहन-ए-रंगीं से शोला सा निकलता है
ज़ाहिद असीर-ए-गेसू-ए-जानाँ न हो सका
चिलमन से जो दामन के किनारे निकल आए
लम्हे उलझन के क़रीब आ पहुँचे
तजल्लियों से ग़म-ए-ए'तिबार ले के उठा
ये नीम-बाज़ तिरी अँखड़ियों के मयख़ाने
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी मालूम होती है
मेरी आँखों में हैं आँसू तेरे दामन में बहार