तेज़-तर लहजा-ए-गुफ़्तार किया है हम ने
तेज़-तर लहजा-ए-गुफ़्तार किया है हम ने
बर्ग-ए-गुल को कभी तलवार किया है हम ने
शोला-ए-तेग़ को आग़ोश-ए-नज़र में ले कर
ज़ीस्त में मौत को भी प्यार किया है हम ने
कितने मंसूरों का ख़ूँ दे के तिरे कूचे में
एहतिराम-ए-रसन-ओ-दार किया है हम ने
मय-कदे वालों को साक़ी का हवाला दे कर
एक आवाज़ पे हुशियार किया है हम ने
ग़ैर के ख़ाम इरादों को किया है पसपा
अज़्म को आहनी दीवार किया है हम ने
अम्न कहते हैं जिसे रूह है आज़ादी की
एक आलम को ख़बर-दार किया है हम ने
ग़ैर को पहले ही पहचान लिया था लेकिन
होश में आने को इक वार किया है हम ने
ख़ून के दाग़ चटानों पे जो पाए हैं 'नुशूर'
चूम कर लाला-ए-कुहसार किया है हम ने
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