मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
मलाहत जवानी तबस्सुम इशारा
इन्हीं काफ़िरों ने तो शायर को मारा
मोहब्बत भी ज़ालिम अजब बेबसी है
न वो ही हमारे न दिल ही हमारा
मैं तिनकों का दामन पकड़ता नहीं हूँ
मोहब्बत में डूबा तो कैसा सहारा
मुझे सतह-ए-ग़म पर अभी तैरने दो
मैं डूबा तो डूबा तग़ज़्ज़ुल का तारा
जो बिस्मिल बना दे वो क़ातिल तबस्सुम
जो क़ातिल बना दे वो दिलकश नज़ारा
मोहब्बत का भी खेल नाज़ुक है कितना
नज़र मिल गई आप जीते मैं हारा
तुम्हारी उमंगों का क्या पूछना है
बहारें तुम्हारी गुलिस्ताँ तुम्हारा
तुम्हारा 'नुशूर' और तुम्हारा तख़य्युल
मोहब्बत तुम्हारी तो शायर तुम्हारा
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