लम्हे उलझन के क़रीब आ पहुँचे
लम्हे उलझन के क़रीब आ पहुँचे
साए रहज़न के क़रीब आ पहुँचे
आँसुओं से ही बुझा ले नादाँ
शोले दामन के क़रीब आ पहुँचे
कौन मुजरिम को बचा सकता है
हाथ दामन के क़रीब आ पहुँचे
शीशा-ओ-मय जो कभी रक़्स में थे
संग-ओ-आहन के क़रीब आ पहुँचे
अब तो अपनों पे भरोसा न रहा
दोस्त दुश्मन के क़रीब आ पहुँचे
शोर सुन कर मिरी रुस्वाई का
वो भी चिलमन के क़रीब आ पहुँचे
हम रिवायात को पिघला के 'नुशूर'
इक नए फ़न के क़रीब आ पहुँचे
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