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कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते - नुशूर वाहिदी कविता - Darsaal

कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते

कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते

ये बादल उड़ के आते हैं मगर साया नहीं करते

यही काँटे तो कुछ ख़ुद्दार हैं सेहन-ए-गुलिस्ताँ में

कि शबनम के लिए दामन तो फैलाया नहीं करते

वो ले लें गोशा-ए-दामन में अपने या फ़लक चुन ले

मिरी आँखों में आँसू बार बार आया नहीं करते

सलीक़ा जिन को होता है ग़म-ए-दौराँ में जीने का

वो यूँ शीशे को हर पत्थर से टकराया नहीं करते

जो क़ीमत जानते हैं गर्द-ए-राह-ए-ज़िंदगानी की

वो ठुकराई हुई दुनिया को ठुकराया नहीं करते

क़दम मय-ख़ाना में रखना भी कार-ए-पुख़्ता-काराँ है

जो पैमाना उठाते हैं वो थर्राया नहीं करते

'नुशूर' अहल-ए-ज़माना बात पूछो तो लरज़ते हैं

वो शाएर हैं जो हक़ कहने से कतराया नहीं करते

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In Hindi By Famous Poet Nushur Wahidi. is written by Nushur Wahidi. Complete Poem in Hindi by Nushur Wahidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.