हुस्न जितना ही सादा होता है
हुस्न जितना ही सादा होता है
गेसू-ए-ना-कुशादा होता है
जब कभी शग़्ल-ए-बादा होता है
एक आलम ज़ियादा होता है
जब वो आते हैं ज़िंदगी के क़रीब
दिल भी दूर-ऊफ़्तादा होता है
क्या ख़बर ये फ़शुर्दा-ए-अंगूर
कितना ख़ूँ हो के बादा होता है
उन का जल्वा न दूर है न क़रीब
नूर है कम ज़ियादा होता है
हुस्न होता है सादा-ओ-रंगीं
इश्क़ रंगीन-ओ-सादा होता है
गुनगुनाता हूँ फ़ुर्सतों में 'नुशूर'
शेर तन्हाई-ज़ादा होता है
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