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हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए - नुशूर वाहिदी कविता - Darsaal

हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए

हज़ार शम्अ फ़रोज़ाँ हो रौशनी के लिए

नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए

तअल्लुक़ात की दुनिया भी आदमी के लिए

इक अजनबी सा तसव्वुर है अजनबी के लिए

चमन चमन है मोहब्बत जहाँ जहाँ से जमाल

ये एहतिमाम है इक दिल की ज़िंदगी के लिए

शब-ए-नशात मुबारक तुझे ये माह-ओ-नुजूम

सहर बहुत है मिरी कम-सितारगी के लिए

निगाह-ए-दोस्त सलामत कि फ़ैज़-ए-गिर्या से

बहुत गुहर हैं मिरे दामन-ए-तही के लिए

निगाह-ए-मस्त की सहबा टपक रही है 'नुशूर'

ग़ज़ल कही है तबीअत की सरख़ुशी के लिए

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In Hindi By Famous Poet Nushur Wahidi. is written by Nushur Wahidi. Complete Poem in Hindi by Nushur Wahidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.