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अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं - नुशूर वाहिदी कविता - Darsaal

अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं

अपनी दुनिया ख़ुद ब-फ़ैज़-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं

इक जहान-ए-शौक़-ए-ना-मोहकम बना सकता हूँ मैं

मेरी आँखों में हैं आँसू तेरे दामन में बहार

गुल बना सकता है तू शबनम बना सकता हूँ मैं

दिल के बाजे में नहीं मालूम कितने तार हैं

हुस्न को इक तार का महरम बना सकता हूँ मैं

फिर हक़ीक़त की उसी जन्नत की जानिब लौट कर

बंदगी को लग़्ज़िश-ए-आदम बना सकता हूँ मैं

हासिल-ए-अश्क-ए-नदामत कुछ नहीं इस के सिवा

है जो दामन तर उसी को नम बना सकता हूँ मैं

इश्क़ हूँ मेरे लिए पास-ए-हुदूद-ए-होश क्या

हो के दीवाना भी इक आलम बना सकता हूँ मैं

जिस क़दर आँसू गिरे उतना ही इंसाँ हो सका

ज़िंदगी शायद ब-क़द्र-ए-ग़म बना सकता हूँ मैं

ख़ुद-शनासी की शराब-ए-आतिशीं भर कर 'नुशूर'

कासा-ए-मुफ़लिस को जाम-ए-जम बना सकता हूँ मैं

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In Hindi By Famous Poet Nushur Wahidi. is written by Nushur Wahidi. Complete Poem in Hindi by Nushur Wahidi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.