ख़ुदा पर ही सदा ईमान रखना
बहर-सूरत उसी का ध्यान रखना
तअल्लुक़ ख़त्म तो तुम कर रहे हो
मगर कुछ सुल्ह का इम्कान रखना
मिलाओ हाथ सब से खुल के लेकिन
मिज़ाजों की भी कुछ पहचान रखना
अजब फ़ितरत किसी की हो गई है
निगाहों को मिरी हैरान रखना
कठिन है राह सच्चाई की 'क़ैसर'
हथेली पर हमेशा जान रखना