तहज्जुद में वो रंग-ओ-बू रात भर
तहज्जुद में वो रंग-ओ-बू रात भर
ख़ुदा से रही गुफ़्तुगू रात भर
जो ख़्वाबों में लहराए फूलों के जाम
महकते रहे बे-सुबू रात भर
हुआ जो सर-ए-शाम दिल पाश पाश
किया तार-ए-ग़म से रफ़ू रात भर
वो तन्हाई का ख़ूबसूरत हुजूम
वो मेला सर-ए-आब-जू रात भर
चमकते रहे आँसुओं के चराग़
किया याद उन्हें बा-वज़ू रात भर
ये कमरे से कैसी महक आई थी
वहाँ तो न थे मैं न तू रात भर
तुम्हें 'नूर' ख़ुशबू ने ढूँडा बहुत
कहाँ तुम रहे ऐ गुरु रात भर
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