ख़ौफ़ की ऐसी न बीमारी लगे
ख़ौफ़ की ऐसी न बीमारी लगे
सच वो बोले तो अदाकारी लगे
साहिबों से हर इजाज़त लो मगर
मुस्कुराना भी न सरकारी लगे
सब मियाँ हालात पर मौक़ूफ़ है
फूल भी तलवार से भारी लगे
ऐ फ़रिश्तो सर न ढलकाना मिरा
मौत भी आए तो सरदारी लगे
भाड़ में जाए ये तहज़ीब-ए-कलाम
बात कहने में भी दुश्वारी लगे
वो ग़ज़ल-आबाद में रहता है नूर
क्यूँ न उस का हर सुख़न कारी लगे
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