क्या ख़बर हिज्र की शब की भी सहर होती है
क्या ख़बर हिज्र की शब की भी सहर होती है
किस तरह देखिए ये रात बसर होती है
तेरे दीवानों की महफ़िल में है पहचान यही
रेग-ए-सहरा से सिवा ख़ाक-बसर होती है
काम बिगड़े हुए बन जाते हैं अक्सर मेरे
जब कभी तेरी इनायत की नज़र होती है
काटता हूँ शब-ए-फ़ुर्क़त इसी अरमान के साथ
डूब जाते हैं सितारे तो सहर होती है
ज़ुल्फ़-ओ-ज़ुल्फ़ जो तूल-ए-शब-ए-हिज्राँ बन जाए
चश्म वो चश्म जो पैकान-ए-जिगर होती है
चाँदनी माँद पड़े ऐसी सबाहत उन की
शक्ल देखे तो कोई रश्क-ए-क़मर होती है
रस्म-ए-उल्फ़त में यही होता है अक्सर ऐ 'नूर'
डूब जाते हैं सफ़ीने तो ख़बर होती है
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