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वज़ीरे चुनीं - नून मीम राशिद कविता - Darsaal

वज़ीरे चुनीं

तो जब सात सौ आठवीं रात आई

तो कहने लगी शहरज़ाद:

ऐ जवाँ-बख़्त

शीराज़ में एक रहता था नाई;

वो नाई तो था ही

मगर उस को बख़्शा था क़ुदरत ने

इक और नादिर गिराँ-तर हुनर भी

कि जब भी

किसी मर्द-ए-दाना का ज़ेहन-ए-रसा

ज़ंग-आलूदा होने को आता

तो नाई को जा कर दिखाता

कि नाई दिमाग़ों का मशहूर माहिर था

वो कासा-ए-सर से उन को अलग कर के

इन की सब आलाइशें पाक कर के

फिर अपनी जगह पर लगाने के फ़न में था कामिल

ख़ुदा का ये करना हुआ

एक दिन

इस की दुकाँ से

ईरान का इक वज़ीर-ए-कुहन-साल गुज़रा

और इस ने चाहा

कि वो भी ज़रा

अपने उलझे हुए ज़ेहन की

अज़ सर-ए-नौ सफ़ाई करा ले

किया कासा-ए-सर को नाई ने ख़ाली

अभी वो उसे साफ़ करने लगा था

कि नागाह आ कर कहा एक ख़्वाजा-सरा ने:

मैं भेजा गया हूँ जनाब-ए-वज़ारत-ए-पनह को बुलाने

और इस पर

सरासीमा हो कर जो उट्ठा वज़ीर एक दम

रह गया पास दल्लाक के मग़्ज़ उस का

वो बे-मग़्ज़ सर ले के दरबार-ए-सुल्ताँ में पहुँचा

मगर दूसरे रोज़ इस ने

जो नाई से आ कर तक़ाज़ा किया

तो वो कहने लगा:

हैफ़

कल शब पड़ोसी की बिल्ली

किसी रौज़न-ए-दर से घुस कर

जनाब-ए-वज़ारत-ए-पनह के

दिमाग़-ए-फ़लक-ताज़ को खा गई है

और अब हुक्म-ए-सरकार हो तो

किसी और हैवान का मग़्ज़ ले कर लगा दूँ

तो दल्लाक ने रख दिया

दानियाल-ए-ज़माना के सर में

किसी बैल का मग़्ज़ ले कर

तो लोगों ने देखा

जनाब-ए-वज़ारत-ए-पनह अब

फ़रासत में

दानिश में

और कारोबार-ए-वज़ारत में

पहले से भी चाक़-ओ-चौबंद-तर हो गए हैं

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In Hindi By Famous Poet Noon Meem Rashid. is written by Noon Meem Rashid. Complete Poem in Hindi by Noon Meem Rashid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.