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रक़्स - नून मीम राशिद कविता - Darsaal

रक़्स

ऐ मिरी हम-रक़्स मुझ को थाम ले

ज़िंदगी से भाग कर आया हूँ मैं

डर से लरज़ा हूँ कहीं ऐसा न हो

रक़्स-गह के चोर दरवाज़े से आ कर ज़िंदगी

ढूँड ले मुझ को, निशाँ पा ले मेरा

और जुर्म-ए-ऐश करते देख ले!

ऐ मिरी हम-रक़्स मुझ को थाम ले

रक़्स की ये गर्दिशें

एक मुबहम आसिया के दौर हैं

कैसी सर-गर्मी से ग़म को रौंदता जाता हूँ मैं!

जी मैं कहता हूँ के हाँ

रक़्स-गह में ज़िंदगी के झाँकने से पेश-तर

कुल्फ़तों का संग-रेज़ा एक भी रहने न पाए!

ऐ मिरी हम-रक़्स मुझ को थाम ले

ज़िंदगी मेरे लिए

एक ख़ूनीं भेड़िए से कम नहीं

ऐ हसीन ओ अजनबी औरत उसी के डर से मैं

हो रहा हूँ लम्हा लम्हा और भी तेरे क़रीब

जानता हूँ तू मिरी जाँ भी नहीं

तुझ से मिलने का फिर इम्काँ भी नहीं

तू मिरी इन आरज़ुओं की मगर तमसील है

जो रहीं मुझ से गुरेज़ाँ आज तक!

ऐ मिरी हम-रक़्स मुझ को थाम ले

अहद-ए-पारीना का मैं इंसाँ नहीं

बंदगी से इस दर ओ दीवार की

हो चुकी हैं ख़्वाहिशें बे-सोज़-ओ-रंग ओ ना-तवाँ

जिस्म से तेरे लिपट सकता तो हूँ

ज़िंदगी पर मैं झपट सकता नहीं!

इस लिए अब थाम ले

ऐ हसीन ओ अजनबी औरत मुझे अब थाम ले!

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In Hindi By Famous Poet Noon Meem Rashid. is written by Noon Meem Rashid. Complete Poem in Hindi by Noon Meem Rashid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.