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गुमाँ का मुमकिन- जो तू है मैं हूँ - नून मीम राशिद कविता - Darsaal

गुमाँ का मुमकिन- जो तू है मैं हूँ

करीम सूरज

जो ठंडे पत्थर को अपनी गोलाई

दे रहा है

जो अपनी हमवारी दे रहा है

(वो ठंडा पत्थर जो मेरे मानिंद

भूरे सब्ज़ों में

दूर रेग ओ हवा की यादों में लोटता है)

जो बहते पानी को अपनी दरिया-दिली की

सरशारी दे रहा है

वही मुझे जानता नहीं

मगर मुझी को ये वहम शायद

कि आप-अपना सुबूत अपना जवाब हूँ मैं!

मुझे वो पहचानता नहीं है

कि मेरी धीमी सदा

ज़माने की झील के दूसरे किनारे

से आ रही है

ये झील वो है कि जिस के ऊपर

हज़ारों इंसाँ

उफ़ुक़ के मुतवाज़ी चल रहे हैं

उफ़ुक़ के मुतवाज़ी चलने वालों को पार लाती हैं

वक़्त लहरें

जिन्हें तमन्ना, मगर, समावी ख़िराम की हो

इन्ही को पाताल ज़मज़मों की सदा सुनाती हैं

वक़्त लहरें

उन्हें डुबोती हैं वक़्त लहरें!

तमाम मल्लाह उस सदा से सदा हिरासाँ, सदा गुरेज़ाँ

कि झील में इक उमूद का चोर छुप के बैठा है

उस के गेसू उफ़ुक़ की छत से लटक रहे हैं

पुकारता है: ''अब आओ, आओ!

अज़ल से मैं मुंतज़िर तुम्हारा

मैं गुम्बदों के तमाम राज़ों को जानता हूँ

दरख़्त मीनार बुर्ज ज़ीने मिरे ही साथी

मिरे ही मुतवाज़ी चल रहे हैं

मैं हर हवाई-जहाज़ का आख़िरी बसेरा

समुंदरों पर जहाज़-रानों का मैं किनारा

अब आओ, आओ!

तुम्हारे जैसे कई फ़सानों को मैं ने उन के

अबद के आग़ोश में उतारा''

तमाम मल्लाह इस की आवाज़ से गुरेज़ाँ

उफ़ुक़ की शाह-राह-ए-मुब्ताज़िल पर तमाम सहमे हुए ख़िरामाँ

मगर समावी ख़िराम वाले

जो पस्त ओ बाला के आस्ताँ पर जमे हुए हैं

उमूद के इस तनाब ही से उतर रहे हैं

इसी को थामे हुए बुलंदी पे चढ़ रहे हैं!

इसी तरह मैं भी साथ इन के उतर गया हूँ

और ऐसे साहिल पर आ लगा हूँ

जहाँ ख़ुदा के निशान-ए-पा ने पनाह ली है

जहाँ ख़ुदा की ज़ईफ़ आँखें

अभी सलामत बची हुई हैं,

यही समावी ख़िराम मेरा नसीब निकला

यही समावी ख़िराम जो मेरी आरज़ू था

मगर न जाने

वो रास्ता क्यूँ चुना था मैं ने

कि जिस पे ख़ुद से विसाल तक का गुमाँ नहीं है?

वो रास्ता क्यूँ चुना था मैं ने

वो रुक गया है दिलों के इबहाम के किनारे?

वही किनारा कि जिस के आगे गुमाँ का मुमकिन

जो तू है मैं हूँ!

मगर ये सच है,

मैं तुझ को पाने की (ख़ुद को पाने की) आरज़ू में निकल पड़ा था

उस एक मुमकिन की जुस्तुजू में

जो तू है मैं हूँ

मैं ऐसे चेहरे को ढूँढता था

जो तू है मैं हूँ

मैं ऐसी तस्वीर के तआक़ुब में घूमता था

जो तू है मैं हूँ!

मैं इस तआक़ुब में

कितने आग़ाज़ गिन चुका हूँ

(में उस से डरता हूँ जो ये कहता

है मुझ को अब कोई डर नहीं है)

मैं इस तआक़ुब में कितनी गलियों से,

कितने चौकों से,

कितने गूँगे मुजस्समों से, गुज़र गया हूँ

मैं इस तआक़ुब में कितने बाग़ों से,

कितनी अंधी शराब रातों से,

कितनी बाँहों से,

कितनी चाहत के कितने बिफरे समुंदरों से

गुज़र गया हूँ

मैं कितनी होश ओ अमल की शम्ओं से,

कितने ईमाँ के गुम्बदों से

गुज़र गया हूँ

मैं इस तआक़ुब में कितने आग़ाज़ कितने अंजाम गिन चुका हूँ

अब इस तआक़ुब में कोई दर है

न कोई आता हुआ ज़माना

हर एक मंज़िल जो रह गई है

फ़क़त गुज़रता हुआ फ़साना

तमाम रस्ते, तमाम बूझे सवाल, बे-वज़्न हो चुके हैं

जवाब, तारीख़ रूप धारे

बस अपनी तकरार कर रहे हैं

जवाब हम हैं जवाब हम हैं

हमें यक़ीं है जवाब हम हैं

यक़ीं को कैसे यक़ीं से दोहरा रहे हैं कैसे!

मगर वो सब आप अपनी ज़िद हैं

तमाम, जैसे गुमाँ का मुमकिन

जो तू है मैं हूँ!

तमाम कुन्दे (तू जानती है)

जो सतह-ए-दरिया पे साथ दरिया के तैरते हैं

ये जानते हैं ये हादसे

कि जिस से उन को,

(किसी को) कोई मफ़र नहीं!

तमाम कुन्दे जो सतह-ए-दरिया पे तैरते हैं,

नहंग बनना ये उन की तक़दीर में नहीं है

(नहंग की इब्तिदा में है इक नहंग शामिल

नहंग का दिल नहंग का दिल!)

न उन की तक़दीर में है फिर से दरख़्त बनना

(दरख़्त की इब्तिदा में है इक दरख़्त शामिल

दरख़्त का दिल दरख़्त का दिल!)

तमाम कुंदों के सामने बंद वापसी की

तमाम राहें

वो सतह-ए-दरिया पे जब्रद-ए-दरिया से तैरते हैं

अब उन का अंजाम घाट हैं जो

सदा से आग़ोश वा किए हैं

अब उन का अंजाम वो सफ़ीने

अभी नहीं जो सफ़ीना-गर के क़यास में भी

अब उन का अंजाम

ऐसे औराक़ जिन पे हर्फ़-ए-सियह छपेगा

अब उन का अंजाम वो किताबें

कि जिन के क़ारी नहीं, न होंगे

अब उन का अंजाम ऐसे सूरत-गरों के पर्दे

अभी नहीं जिन के कोई चेहरे

कि उन पे आँसू के रंग उतरें,

और इन में आइंदा

उन के रूया के नक़्श भर दे

ग़रीब कुंदों के सामने बंद वापसी की

तमाम राहें

बक़ा-ए-मौहूम के जो रस्ते खुले हैं अब तक

है उन के आगे गुमाँ का मुमकिन

गुमाँ का मुमकिन जो तू है मैं हूँ!

जो तू है में हूँ

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In Hindi By Famous Poet Noon Meem Rashid. is written by Noon Meem Rashid. Complete Poem in Hindi by Noon Meem Rashid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.