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अजनबी औरत - नून मीम राशिद कविता - Darsaal

अजनबी औरत

एशिया के दूर-उफ़्तादा शबिस्तानों में भी

मेरे ख़्वाबों का कोई रूमाँ नहीं!

काश इक दीवार-ए-ज़ुल्म

मेरे उन के दरमियाँ हाइल न हो!

ये इमारात-ए-क़दीम

ये ख़याबाँ, ये चमन, ये लाला-ज़ार,

चाँदनी में नौहा-ख़्वाँ

अजनबी के दस्त-ए-ग़ारत-गर से हैं

ज़िंदगी के इन निहाँ-ख़ानों में भी

मेरे ख़्वाबों का कोई रूमाँ नहीं!

काश इक ''दीवार-ए-रंग''

मेरे उन के दरमियाँ हाएल न हो!

ये सियह-पैकर बरहना राह-रौ

ये घरों में ख़ूबसूरत औरतों का ज़हर-ए-ख़ंद

ये गुज़रगाहों पे देव-आसा जवाँ

जिन की आँखों में गुर्सिना आरज़ुओं की लपक

मुश्तइल, बे-बाक मज़दूरों का सैलाब-ए-अज़ीम!

अर्ज़-ए-मश्रिक, एक मुबहम ख़ौफ़ से लर्ज़ां हूँ मैं

आज हम को जिन तमन्नाओं की हुर्मत के सबब

दुश्मनों का सामना मग़रिब के मैदानों में है

उन का मश्रिक में निशाँ तक भी नहीं!

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In Hindi By Famous Poet Noon Meem Rashid. is written by Noon Meem Rashid. Complete Poem in Hindi by Noon Meem Rashid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.