ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैं
हज़ार फ़ित्ना-ए-महशर उठाए बैठे हैं
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उन से गर फ़ैज़याब हो जाता
जो अहल-ए-ज़ौक़ हैं वो लुत्फ़ उठा लेते हैं चल फिर कर
मैं तरद्दुद से कभी ख़ाली नहीं
उन से सब हाल दग़ाबाज़ कहे देते हैं
कहता है कोई सुन के मिरी आह-ए-रसा को
अश्कों के टपकने पर तस्दीक़ हुई उस की
अगर उस का मिरा झगड़ा यहीं तय हो तो अच्छा हो
दिल हमारी तरफ़ से साफ़ करो
अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
आप का दिल क्या मिरे दिल से मिला
वो हाथ में तलवार लिए सर पे खड़े हैं
आज आएँगे कल आएँगे कल आएँगे आज आएँगे