वो ख़ुदाई कर रहे थे जब ख़ुदा होने से क़ब्ल
तो ख़ुदा जाने करेंगे क्या ख़ुदा होने के बा'द
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नूह बैठे हैं चारपाई पर
वो घर से चले राह में रुक गए
क्या कहूँ हम-नशीं ये मेरा भाग
वो हाथ में तलवार लिए सर पे खड़े हैं
तासीर के दो हिस्से अगर हों तो मज़ा है
आप जिन के क़रीब होते हैं
यूँ न मेरी बात मानी जाएगी
कूचा-ए-यार में कुछ दूर चले जाते हैं
ख़ुदा से ज़ुल्म का शिकवा ज़रूर मैं ने किया
हमें इसरार मिलने पर तुम्हें इंकार मिलने से
दिल में घुट घुट कर इन्हें रहते ज़माना हो गया
वो ख़ुदा जाने घर में हैं कि नहीं