वो ख़ुदा जाने घर में हैं कि नहीं
कुछ खुला और कुछ है बंद किवाड़
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वह करेंगे मिरा क़ुसूर मुआफ़
मिलना जो न हो तुम को तो कह दो न मिलेंगे
मैं हूँ ज़ालिम की आन-बान से ख़ुश
पूरी न अगर हो तो कोई चीज़ नहीं है
नाकाम-ए-नशात-ए-ऐश-ओ-ख़ुशी हर वक़्त के रंज-ओ-ग़म ने किया
ताब नहीं सुकूँ नहीं दिल नहीं अब जिगर नहीं
हर तरह यूँ है दूँ है बे-मअ'नी
पामाल हो के भी न उठा कू-ए-यार से
आते आते राह पर वो आएँगे
कहता है कोई सुन के मिरी आह-ए-रसा को
तुम्हारी शोख़-नज़र इक जगह कभी न रही