तासीर के दो हिस्से अगर हों तो मज़ा है
इक मेरी फ़ुग़ाँ को मिले इक तेरी अदा को
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शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ
ऐ 'नूह' तौबा इश्क़ से कर ली थी आप ने
दिल उन्हें देंगे मगर हम देंगे इन शर्तों के साथ
दिखाए पाँच आलम इक पयाम-ए-शौक़ ने मुझ को
हर तलबगार को मेहनत का सिला मिलता है
कब अहल-ए-इश्क़ तुम्हारे थे इस क़दर गुस्ताख़
हमारे दिल से क्या अरमान सब इक साथ निकलेंगे
यूँ चले दौर तो रिंदों का बड़ा काम चले
सत्या-नास हो गया दिल का
कोई यहाँ से चल दिया रौनक़-ए-बाम-ओ-दर नहीं
माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़
अभी कम-सिन हैं मालूमात कितनी