सुनते रहे हैं आप के औसाफ़ सब से हम
मिलने का आप से कभी मौक़ा नहीं मिला
Gulzar
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Ahmad Faraz
Anwar Masood
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बरसों रहे हैं आप हमारी निगाह में
हर तलबगार को मेहनत का सिला मिलता है
मज़हब-इश्क़-ओ-वफ़ा मुझ को ये देता है सलाह
दर्द-ए-फ़िराक़ दिल से जुदा हो तो जानिए
ऐ 'नूह' तौबा इश्क़ से कर ली थी आप ने
साक़ी जो दिल से चाहे तो आए वो ज़माना
ऐ दैर-ओ-हरम वालो तुम दिल की तरफ़ देखो
कम्बख़्त कभी जी से गुज़रने नहीं देती
गुलज़ार में ये कहती है बुलबुल गुल-ए-तर से
हम ने ये देख लिया देख लिया देख लिया
फ़रोग़-ए-हुस्न में क्या बे-सबात दिल का वजूद
इश्क़ में मुझ को बिगड़ कर अब सँवरना आ गया