शर्मा के बिगड़ के मुस्कुरा कर
वो छुप रहे इक झलक दिखा कर
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अभी उस क़यामत को मैं क्या कहूँ
मैं किसी शोख़ की गली में नहीं
हम इंतिज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं
वह करेंगे मिरा क़ुसूर मुआफ़
का'बा हो दैर हो दोनों में है जल्वा उस का
तुम्हारी शोख़-नज़र इक जगह कभी न रही
हर तरह यूँ है दूँ है बे-मअ'नी
कम्बख़्त कभी जी से गुज़रने नहीं देती
इक सितम ढाने में फ़र्द एक सितम सहने में
आते आते राह पर वो आएँगे
पूरी न अगर हो तो कोई चीज़ नहीं है
बरसों रहे हैं आप हमारी निगाह में