साक़ी जो दिल से चाहे तो आए वो ज़माना
हर शख़्स हो शराबी हर घर शराब-ख़ाना
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माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़
इस कम-सिनी में हो उन्हें मेरा ख़याल क्या
माजरा-ए-क़ैस मेरे ज़ेहन में महफ़ूज़ है
ऐ 'नूह' तौबा इश्क़ से कर ली थी आप ने
साग़र-ब-दस्त हूँ मैं
शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ
हमारे दिल से क्या अरमान सब इक साथ निकलेंगे
ना-रसा आहें मिरी औज-ए-मरातिब पा गईं
मेरे जीने का तौर कुछ भी नहीं
हज़ारों रंज-ए-दिल दे दे के माशूक़ों को झेले हैं
कोई यहाँ से चल दिया रौनक़-ए-बाम-ओ-दर नहीं
वो बात क्या जो और की तहरीक से हुई