मुझ को ये फ़िक्र कि दिल मुफ़्त गया हाथों से
उन को ये नाज़ कि हम ने उसे छीना कैसा
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चाहिए थी शम्अ इस तारीक घर के वास्ते
जो अच्छे हैं उन की कहानी भी अच्छी
अल्लाह-रे उन के हुस्न की मोजिज़-नुमाईयाँ
वो ख़ुदाई कर रहे थे जब ख़ुदा होने से क़ब्ल
ऐ 'नूह' खुल चले थे वो हम से शब-ए-विसाल
दिल नज़्र करो ज़ुल्म सहो नाज़ उठाओ
सवाल-ए-वस्ल पे उज़्र-ए-विसाल कर बैठे
इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया
इस कम-सिनी में हो उन्हें मेरा ख़याल क्या
पूरी न अगर हो तो कोई चीज़ नहीं है
हम इंतिज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं
कोई नहीं पछताने वाला