माजरा-ए-क़ैस मेरे ज़ेहन में महफ़ूज़ है
एक दीवाने से सुनिए एक दीवाने का हाल
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(345) Peoples Rate This
मिरी फ़ुग़ाँ में असर है भी और है भी नहीं
ऐ 'नूह' खुल चले थे वो हम से शब-ए-विसाल
दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने
गुलशन में कभी हम सुनते थे वो क्या था ज़माना फूलों का
चलो 'नूह' तुम को दिखा लाएँ तुम ने
हर तरह यूँ है दूँ है बे-मअ'नी
दर्द-ए-फ़िराक़ दिल से जुदा हो तो जानिए
इश्क़ में मुझ को बिगड़ कर अब सँवरना आ गया
उन का वा'दा उन का पैमाँ उन का इक़रार उन का क़ौल
दम जो निकला तो मुद्दआ निकला
कुछ दिनों क़ाएम रहे ऐ मह-जबीं इतनी नहीं
मैं पस-ए-तर्क-ए-मोहब्बत किसी मुश्किल में नहीं