मैं कोई हाल-ए-सितम मुँह से कहूँ या न कहूँ
ऐ सितमगर तिरे अंदाज़ कहे देते हैं
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बुलबुल का उड़ाया दिल नाहक़ ये ख़ाम-ख़याली फूलों की
दोस्ती को बुरा समझते हैं
हम ने ये देख लिया देख लिया देख लिया
हमेशा तमन्ना-ओ-हसरत का झगड़ा हमेशा वफ़ा-ओ-मोहब्बत का हुल्लड़
ऐ 'नूह' खुल चले थे वो हम से शब-ए-विसाल
ऐ 'नूह' तौबा इश्क़ से कर ली थी आप ने
यूँ चले दौर तो रिंदों का बड़ा काम चले
चलो 'नूह' तुम को दिखा लाएँ तुम ने
उन से सब हाल दग़ाबाज़ कहे देते हैं
हर सदाए इश्क़ में इक राज़ है
ख़ुदा से ज़ुल्म का शिकवा ज़रूर मैं ने किया
कुछ और बन पड़ी न सवाल-ए-विसाल पर