लैला है न मजनूँ है न शीरीं है न फ़रहाद
अब रह गए हैं आशिक़ ओ माशूक़ में हम आप
Wasi Shah
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Parveen Shakir
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हम ने ये देख लिया देख लिया देख लिया
चाहिए थी शम्अ इस तारीक घर के वास्ते
आप जो कहते हैं सब हज़रत-ए-नासेह है बजा
पहलू में चैन से दिल-ए-मुज़्तर न रह सका
फ़रोग़-ए-हुस्न में क्या बे-सबात दिल का वजूद
हुस्न-ए-मुत्लक़ का निशाँ का'बे में तो मिलता नहीं
अभी उस क़यामत को मैं क्या कहूँ
नूह बैठे हैं चारपाई पर
बे-कसी में यही हूँ पास कहीं
ख़याल में इक न इक मज़े की नई कहानी है और हम हैं
काबा हो कि बुत-ख़ाना हो ऐ हज़रत-ए-वाइज़
तिरी तुंद-ख़ूई तिरी कीना-जूई तिरी कज-अदाई तिरी बेवफ़ाई