ख़ुदा के डर से हम तुम को ख़ुदा तो कह नहीं सकते
मगर लुत्फ़-ए-ख़ुदा क़हर-ए-ख़ुदा शान-ए-ख़ुदा तुम हो
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
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Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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मिरा दिल देखो अब या मेरे दुश्मन का जिगर देखो
इश्क़ के वास्ते है दिल की आड़
कम्बख़्त कभी जी से गुज़रने नहीं देती
कब अहल-ए-इश्क़ तुम्हारे थे इस क़दर गुस्ताख़
इक सितम ढाने में फ़र्द एक सितम सहने में
शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ
क्या कहूँ हम-नशीं ये मेरा भाग
वो कहते हैं आओ मिरी अंजुमन में मगर मैं वहाँ अब नहीं जाने वाला
क्या वस्ल के इक़रार पे मुझ को हो ख़ुशी आज
बर्बाद-ए-वफ़ा हो कर मस्जूद-ए-जहाँ दिल हो
तुम अपने आशिक़ों से कुछ न कुछ दिल-बस्तगी कर लो
मुझ को ये फ़िक्र कि दिल मुफ़्त गया हाथों से