इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया
जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है
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अल्लाह-रे उन के हुस्न की मोजिज़-नुमाईयाँ
किसी बे-दर्द को ज़ुल्म-ओ-सितम का शौक़ जब होगा
कुछ दिनों क़ाएम रहे ऐ मह-जबीं इतनी नहीं
कोई यहाँ से चल दिया रौनक़-ए-बाम-ओ-दर नहीं
दौलत है बड़ी चीज़ हुकूमत है बड़ी चीज़
यूँ न मेरी बात मानी जाएगी
मुझ को नज़रों के लड़ाने से है काम
मुझ को दीवाना समझते हैं वो शैदाई भी
ना-रसा आहें मिरी औज-ए-मरातिब पा गईं
वाह ये लुत्फ़-ए-सोज़-ए-उल्फ़त किस की बदौलत दिल की बदौलत
हमें इसरार मिलने पर तुम्हें इंकार मिलने से