इस कम-सिनी में हो उन्हें मेरा ख़याल क्या
वो कै बरस के हैं अभी सिन क्या है साल क्या
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(315) Peoples Rate This
बे-वज्ह मोहब्बत से नहीं बोल रहे हैं
शर्मा के बिगड़ के मुस्कुरा कर
कहता है कोई सुन के मिरी आह-ए-रसा को
आप के दिल का मिरे दिल का नफ़ाज़
शिकवों पे सितम आहों पे जफ़ा सौ बार हुई सौ बार हुआ
जिगर की चोट ऊपर से कहीं मा'लूम होती है
हर तलबगार को मेहनत का सिला मिलता है
दिल नज़्र करो ज़ुल्म सहो नाज़ उठाओ
जाने को जाए फ़स्ल-ए-गुल आने को आए हर बरस
कह रही है ये तिरी तस्वीर भी
दिल जो दे कर किसी काफ़िर को परेशाँ हो जाए
माना कि मिरा दिल भी जिगर भी है कोई चीज़