हम ने ये देख लिया देख लिया देख लिया
आप भी 'नूह' के तूफ़ान से डर जाते हैं
Faiz Ahmad Faiz
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ख़ुदा के डर से हम तुम को ख़ुदा तो कह नहीं सकते
गुलज़ार में ये कहती है बुलबुल गुल-ए-तर से
वह करेंगे मिरा क़ुसूर मुआफ़
दिल हमारी तरफ़ से साफ़ करो
क्या वस्ल के इक़रार पे मुझ को हो ख़ुशी आज
ख़ाक हो कर ही हम पहुँच जाते
ताब नहीं सुकूँ नहीं दिल नहीं अब जिगर नहीं
महफ़िल में तेरी आ के ये बे-आबरू हुए
ना-रसा आहें मिरी औज-ए-मरातिब पा गईं
मुझ को नज़रों के लड़ाने से है काम
कोई नहीं पछताने वाला
इस कम-सिनी में हो उन्हें मेरा ख़याल क्या